Wednesday, July 21, 2010

तसवीर सी चिट्ठी

आँसू भरी कलम से ममता भारी हथेली पे
माँ तेरी चिट्ठी  लिखती है
घर राह देखे तेरी लाल मेरे ये आखें तेरी राह तकती है
            जबसे तू गया बिदेस सुने पड़ गए आँगन
            जब खेले छोटे बच्चे याद आये तेरा बचपन
            दूध के प्याली में तस्वीर तेरी झलकती है
ममता के मोम को बनाया था पत्थर मैंने
माथे पे विजयी टिका सजा के विदा किया था मैंने
एक माँ की इच्छा थी की लाज रखे तू जन्मदात्री की
पर माँ की ममता अब "पत्थर" से लहू रुलाती है
खेल रहा है तू खून की होली
पर बहु के रंग अब सजाते नहीं रंगोली
हाथों से अपने सिन्दूर तेरा वो  अपनी मांग में भरती है
पर लाज भरी वह आखें अब आंसू भरी रहती है
उस अबला की पवित्रता इन्तजार तेरा करती है
            पर देश की आन का समय है यह
तो दूध का कर्ज तुम्हें उतरना होगा
शहीद भी हुआ अग़र तू विजयी तुम्हे होना होगा
भावनओं के फूल कर्तव्य के काटों से  ही सजते है
एक तू ही नहीं है वहां हर माँ के बेटे रहते है
            पर फर्ज के ऊँचे  के पहाड़ो के पीछे
            प्यार की कुटिया में माँ भी तेरी रहती है

जयदीप भोगले
जून १९९९
हिंदी
      

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