Wednesday, August 18, 2010

आशिक की दास्ताँ

तुम इस मोड़ पे मुझसे मिले की जहाँ आगे रास्ता नहीं था
हाथ बढाया था तुने मगर तब मेरा साथ ही नहीं था
             तड़पता रहा मई पानी के बिना मगर वहां कोई नहीं था
तुमने सागर बहाया  मगर मेरी साँसों में तब दम ही नहीं था
      लौट रही थी मन की मौजे मन के समुंदर में जब साहिल ही नहीं था
         अब साहिल इन्तजार करता है रात दिन जब दरया में पानी ही नहीं था
मेरी ख़राशे घाव बन गए तब दवा लगाने कोई नहीं था
तुम मरहम लेके आ गए जब घाव क्या मै ही नहीं था
        अब न बहाओ आसुंओ को मै आज नहीं कल था
       पर सुनना लोगों से कभी किस्सों में  ... तुम्हारा भी आशिक हुआ करता था 
जयदीप भोगले
१८ -१०-१९९९    

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