टूटी रेखाओ को जोड़ता हूँ
एक रंग का सपना सजाता हूँ
जब चित्रों को जिन्दा मै बनता हूँ
तभी अपने व्यक्तित्व में एक चित्रकार को मै पाता हूँ
कभी नदी नहरों को बहाता हूँ
कभी आंसू भी छलकता हूँ
सूरज की किरणों की सचेतनता महसूस मै जब करता हूँ
तभी अपने व्यक्तित्व में एक चित्रकार को मै पाता हूँ
सपने मै जीता हूँ
कई चेहरों की मुस्कान मै बनता हूँ
पर तेरे झील से नीली आँखों में जब मै खो जाता हूँ
तभी अपने व्यक्तित्व में एक चित्रकार को मै पाता हूँ
हाथ को मै बढ़ाता हूँ
रंगों को भी मै छूता हूँ
पर तेरी लाज भरी मुस्कान का रंग महसूस मै जब करता हूँ
तभी अपने व्यक्तित्व में एक चित्रकार को मै पाता हूँ
पर कुछ दिनों से मै देखता हूँ
उजाले में अँधेरे की कालिक मै पाता हूँ
जब तेरी जुदाई की सच्चाई को जब मै समझता हूँ
एक कलाकार से बेबस मै बन जाता हूँ
अपने चित्रकारी को मै भूल जाता हूँ
अपने व्यक्तित्व में एक तड़पते प्रेमी को मै पाता हूँ
जयदीप भोगले
२०-०१-२००१
zakkas ahe ekdam
ReplyDeletethanks geeta
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