Tuesday, November 2, 2010

संघर्ष

 था ख्वाब या सच्चाई थे ये
सपने जैसी हकीकत सुनाता हूँ
दिल को भी न थी खबर जिसकी
यारो , उसको को मै बयां करता हूँ

क्या थे वो दिन दोस्ती के
कुछ खट्टे थे कुछ मीठे थे 
ना बात थी दिल में कुछ 
हम तो सीधे साधे थे

वह थी चुलबुली ऐसी
चहकती बुलबुल जैसे थी 
उसकी बाते बहते पानी जैसी
कतरे भर मैल से मैली होती थी

मै भी उसका चहेता
हर रोज था उसको कहता
अपना रिश्ता है मेरे दोस्त
हीरे और सोने जैसा

वह  दिन ना भूलूंगा मै
जब मैंने उसकी आँखों में देखा
दोस्त था वो तो मेरा
एक प्यारा सा दोस्त अब बन बैठा

उस दिन रात आँखों में नींद ना आई 
जब नींद ने देखा आँखों में
आँखों में थी वो समायी
   
 पल पल मिलके दिन हुए
    तो मेरा दिल कुछ और ही था
मुहब्बत जागी थी उसमे 
दिल मै उसको दे चूका था
  
  अब वह आती तो 
मेरी साँसे महक जाती थी
पर मुझे कहने में था डर,
ना कर दे वो इन्कार
प्यार था दिल में मेरे पर
मंजूर ना  थी मुझे यह हार 
              कभी लगता था ऐसे
              कुछ होगा उसके मन में भी
                आसमाँ जब बरसता है
               भीग जाती है जमीं भी 
              
 पर ख़याल यह ख़याल ही रहा
                मेरा प्यार अधुरा ही रहा
               दो मनो के हालत का यह पंछी
                दिल के पिंजरे में बंद ही रहा

पर अब भी मै खुश हूँ 
क्योंकि पंछी मेरे पास है
पिंजरे में ही है वह चहकता
पर प्रेम गीत गुनगुनाता है 

जयदीप भोगले
१२.०६.१९९९ 

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