Sunday, September 26, 2021

मैदान ए जंग

 


किताबो का ईल्म काम नही आता

तजुर्बे पे भी आ जाते है सवाल

परछाई भी बदला करती है धूप मे

वक्त के बदलाव का है ये कमाल


खिलाडी को तय्यार होना पडता है हमेशा

जंग मे तलवारे इत्तला नही देती

जितना पडता है हर पलटते वार से

मैदान ए जंग जीत का मौका नही देती



सिपाही हो या राजा सब को मौत का डर होता है

  जंग हो या शतरंज हर प्यादे मे वजीर छुपा होता है

सोच से बनते है ताज सोने की जरूरत  नही होती

सिकंदर वक्त ही होता है तख्त पलटते देर नही लगती


जयदीप भोगले

26 सप्टेंबर 2021

31 डिसेम्बर

  31 डिसेंबर मला भारी अजब वाटते  कधी मागच्या वर्षाचा कॅलिडोस्कोप   तर कधी नवीन वर्षाची दुर्बीण वाटते तिला पहिल्या भेटीची भाषा कळते नव्या काम...