काश ये आसमां हमारा होता
तो जमीं का नजारा कूछ और होता
हमारे मकाम के रास्ते हम उपर से ही खोज लेते
इस गली कुचे मे शायद गुमशुदा नही होता
जमीं की खूबसुरती उपर से ही देख लेते
यूँ बुतों के बाजार मे बेजार नही होता
इस सोच को पल भर एक बादल ने तोडा
जोरो से बरस के जमीं पे ला छोडा
जब टूटा तो जमीन के इंसां से जुडा
नही तो आस्मान का खुदा बन गया होता
जयदीप भोगले
30 एप्रिल 2018
नेरुळ 2200
No comments:
Post a Comment