Tuesday, April 30, 2019

नजरिया



काश ये आसमां हमारा होता
तो जमीं का नजारा कूछ और होता

हमारे  मकाम के रास्ते हम उपर से ही खोज लेते
इस गली कुचे मे शायद गुमशुदा नही होता

जमीं की खूबसुरती उपर से ही देख लेते
यूँ बुतों के बाजार मे बेजार नही होता

इस सोच को पल भर एक बादल ने तोडा
जोरो से बरस के जमीं पे ला छोडा

जब टूटा तो जमीन के इंसां से जुडा
 नही तो आस्मान का खुदा बन गया होता

जयदीप भोगले
30 एप्रिल 2018
नेरुळ 2200

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