Thursday, August 12, 2010

उदासी

ये कैसी ही उदासी

उसकी याद जहन से न जाती
दिल ही बेबस लबो ओये ही खामोशी
जी राहा हुं जिंदगी जो खुदा ने ही बख्शी

ये कैसी ही उदासी
ख़ुशी होती है मगर रहती है सिसकीया जरासी
जख्म भरते है मगर बचती है खराशे जरासी
सोता हुं रात को मगर सपने से न वो जाती
एक कशिश है वो पर सीमटीसी शर्मायीसी

पड़ती है बारिश की बूंदे मगर ठंडी आग है जलाती
भुलाना चाहता हूँ मगर उठती है कसक जरासी
पीता हूँ जाम जब  पैमाने जैसे जिन्दगी है बाकि सी
टूटे दिल को जोड़ता हूँ तो बन जाती है तसवीर खुबसूरत सी
जो है बेवफा ऐसे मेरे माशूक की

इश्क का मर्ज यारो ऐसा
जैसे तलवार  हलक से उतर है जाती
बहता है खून बचती है बूंदे
वही दिल से कराह है उठाती
तभी दर्द शायरी  बन है जाती
शायरी बन जाती

हिंदी शायरी उदासी कविता
जयदीप भोगले
१२-०१-९९

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