Monday, August 30, 2010

ख़ामोशी


ख़ामोशी एक बड़ी सजा है
पर कहते है उसका भी अपना मजा है
     हसना चाहता हूँ मगर कैसे
    मेरा एक घाव अभी तक ताजा है
रोने के इरादे से रो नहीं सकता कोई
आँखों के झरने है ख़ाली और ना कोई बादल गरजा है
   खुशियाँ मनाऊं कैसे जब मुझपे मेरे मन का कर्जा है
   घर जाना चाहता हूँ जब एक अनसुनी आवाज ने संदेसा भेजा है
   पर फिसलते है कदम बढाता जब उन्हें पर कहते है के पानी बरसा है
सुना है खाव्बो के घोड़ो पे सवार सात समुंदर भी कोई जाता है
पर खाव्बो के पीछे नींद का भी साया होता है
यादो के दौर में बेबसी को भी जोश आता है
मै बगावत की सोचता हूँ पर ख़ामोशी ने मुझे रोका है

जयदीप भोगले
१८-९-९९ 

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