Sunday, August 22, 2010

चित्रकार




          टूटी रेखाओ    को    जोड़ता   हूँ 
          एक   रंग   का   सपना   सजाता   हूँ 
        जब   चित्रों   को   जिन्दा  मै  बनता  हूँ 
        तभी  अपने  व्यक्तित्व  में  एक  चित्रकार को  मै  पाता  हूँ 

कभी नदी नहरों को बहाता हूँ 
कभी आंसू भी छलकता हूँ
सूरज की किरणों की सचेतनता महसूस मै जब करता हूँ
तभी  अपने  व्यक्तित्व  में  एक  चित्रकार को  मै  पाता  हूँ 

               सपने मै जीता हूँ
                कई चेहरों की मुस्कान मै बनता हूँ 
               पर तेरे झील से नीली आँखों में जब मै खो जाता हूँ
              तभी  अपने  व्यक्तित्व  में  एक  चित्रकार को  मै  पाता  हूँ 
  
हाथ को मै बढ़ाता हूँ
रंगों को भी मै छूता हूँ
पर तेरी लाज भरी मुस्कान का रंग महसूस मै जब करता हूँ
तभी  अपने  व्यक्तित्व  में  एक  चित्रकार को  मै  पाता  हूँ 
                 पर कुछ दिनों से मै देखता हूँ
               उजाले में अँधेरे की कालिक मै पाता हूँ 
               जब तेरी जुदाई की सच्चाई को जब मै समझता हूँ
               एक कलाकार से बेबस मै बन जाता हूँ
               अपने चित्रकारी को मै भूल जाता हूँ
              अपने व्यक्तित्व में एक तड़पते प्रेमी को मै पाता हूँ

जयदीप भोगले
२०-०१-२००१    

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