Monday, August 16, 2010

किमत

   पैसे  के दोस्त है सारे
  पैसा सबका दुश्मन
  नाम का है ये पैसा यारो 
  कच्चे इसके बंधन
         मकान देता है ये पैसा 'घर' नही
       ' आसामी' बनती है इसके दम पे इन्सान नही
        सोना खरीदता है ये दिल नही
       पैसे के पेड से बाग खिलते नही सुने पडते है आंगन
      
पांचाली दावं पर लगायी इसने
                                                             रिश्तो मी दरार लायी इसने
                                               पर आदमी इन्सान जोड न सका
पैसे को गले लागाय उसने 
गुण परखे जाते है दिल से
पर स्वार्थ का बनाया इसने दर्पण
                      
फिर भी बनते है आज भी ' भीमराव'
                      पैसे को रौन्धकर
                     श्रीकृष्ण सुदामा कि यारी ऐसी
                     जो अमर हो गयी पैसे कि दिवार चीरकर
एक सच्चा दोस्त होता है
पैसे से कही बढकर
अपना दोस्ती को ए मनुज 
तोड के सारे बंधन
किमत परख दोस्ती की
यही है कस्तुरी यही है चंदन 

जयदीप भोगले
२७ - जून -१९९९


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