Friday, September 3, 2010

नीलपरी



आसमान जैसे बरसती हो तुम
लहर जैसे उभरती हो तुम
एक अहसास है बेखुदी का
कायनात की नीलपरी हो तुम


दीदार का एक लम्हा थम गया है
तुम्हारा एक दीवाना बन गया है
ये  ख़याल अगर सवाल बने 
क्या इसका जवाब जानती हो तुम


कुछ कांटे फूल के साथ होते है
कुछ परवाने शमा के साथ जलते है
पर आप जब साथ होते है
हम गुलाम और आप ख़ास होते है 


जयदीप भोगले
२७-०२-२००५ 

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