Wednesday, September 8, 2010

साया

 परछाईयो के इस बाजार में
कोई साया अलग होता है
कुछ  धूप से बिखर जाते है
मगर कोई सच्ची तसबीर होता है

फूलों के इस शहर में
कोई गुल अलग होता है
किसी की छुहन भी चुभती है
मगर किसी के कांटो से भी मीठा दर्द होता है

                                    
                                      नजरों के इस कमान में
कोई तीर अलग होता है
कोई टकराके टूट जाते है
मगर कोई दिल चीर देता है

अब किसको क्या बताये
कब कारवाँ में  कोई अकेला  होता है
कोई जिन्दगी के साथ ख़त्म होता है
मगर किसी के साथ एक पल भी जिन्दगी होता है

जयदीप भोगले
२९-०४-०५

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