Thursday, September 16, 2010

बचपन


छलक रही है कुछ तसबीरे पुरानी 
पुरानी है पर उसकी रंगिनीयत सुहानी 
जिम्मेदारी की दहलीज पे खड़ी है जवानी
कुछ याद है बचपन की यादे रूमानी 
           


  बन गयी फूल वो नन्ही सी कली
    पर खुशबू छोड़ गयी उसकी निशानी
   लगा ऐसे की जैसे हो गयी अनोहोनी
    पर कुदरत है ये,
   बचपन बीता लो आ गयी जवानी 
  
 कोमल था तन चंचल था मन
   खुशियों से भरा था जिंदगी का चमन
शोख सा लगता था अल्लड पवन
बचपन के थे ख्वाब आसमानी
सच्चाई से परे थी सोच ये दीवानी
कुछ याद है बचपन की यादे रूमानी


जयदीप भोगले
२५/०२/९९

No comments:

Post a Comment

31 डिसेम्बर

  31 डिसेंबर मला भारी अजब वाटते  कधी मागच्या वर्षाचा कॅलिडोस्कोप   तर कधी नवीन वर्षाची दुर्बीण वाटते तिला पहिल्या भेटीची भाषा कळते नव्या काम...