Thursday, September 9, 2010
मौन
जब मौन बोलने लगता है
तो अनकही से एक कहानी शुरू होती है
एक ख्वाब की हकीकत से टक्कर होती है
एक लब्ज की नज्म से यारी होती है
जब मौन साज छेड़ता है
तो बारिश की हर बूँद गाने लगती है
हर सांस की लय गुनगुनाने लगती है
दिल की धड़कन कुछ सुनाने लगती है
जब मौन देखने लगता है
तब सूरज सी चमक आने लगती है
एक तमस के बाद सुबह मानो शरमाने लगती है
एक आँखों की किरन प्यारी लगने लगती है
पर ये मौन जब खामोश रहता है
मन ही मन में तकरार शुरू होती है
सच और झूठ में दीवार खड़ी होती है
एक मुस्कान में आसुंओ की लड़ी बुनी होती है
इसीलिए मौन बोले तो अच्छा है
उसका साज छेड़ना ही सच्चा है
उसकी एक नजर काफी है
एक जिन्दगी बीतने के लिए ये बहाना अच्छा है
जयदीप भोगले
२९/०५/०५
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